Tuesday, 26 April 2016

आज फिर

आज फिर वो सब याद करने को जी करता है
आज फिर वो सब जीने को जी करता है
कुछ किताबों में अब भी कुछ सूखे
गुलाब रखें हैं
कुछ दरख्तों के नीचे आज भी तुम्हारे होने का अहसास होता है
कुछ शाखों में अब भी तुम्हारे नाम
की खरोंचे बाकी हैं
कुछ सूखे पत्तों में अब भी तुम्हारे कदमों की सरसराहट बाकी है
वे रुमाल अब भी सम्हाल रखें हैं मैंने
जो कभी गिरे तो तुम्हारी उंगलियों को छूकर के उठे
और वो तुम्हारी कुछ तस्वीरें आज भी कपड़ों के नीचे दबी रखी हैं
जिनको कभी लोगों से छुपा किसी
कोने में जा देखा करते थे
हर वो धुंधली यादें फिर कभी साफ
सी दिखती हैं
जब कभी पतझड में पत्ते झड़ के
सूखी शाखाएँ दिखती हैं

#Copied

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